Tuesday, June 13, 2017

हसरतों के बीज़

आज फिर से कुछ लिखने बैठा हूँ लेकिन आज कुछ कविता या बंधनों में रह के लिखने का मन नहीं कर रहा , आज बस बह जाने का मन है । पुरानी  हसरतों को याद करते हुए नयी ख़्वाहिशों के बीज़ बोने का मन है ।


कभी कुछ हसरतों के बीज़ बोये थे आज फिर से कुछ नए बीज़ बोने का मन है लेकिन साथ में पुरानी हसरतों के जो बीज बोये थे उन्हें भी याद करना ज़रूरी था । क्या पता ये नयी हसरतों के  बीज़ पुरानी हसरतों के साथ ज़मीन बाँट रहे हों या हो सकता है कि कुछ बीज़ बोते ही ख़त्म हो गए और सूखी ज़मीन नयी उम्मीद लगाए बैठी हो । 
ठहराव में उम्मीदें दम तोड़ देती हैं । बहता पानी  ऊर्जा समेटे हुए बस चल पड़ता है , ना रास्ते की परवाह और ना अंजाम से डर । इसी बात को सोच कर नयी हसरतों के बीज़ बोने का मन बना लिया है । 
वो पुरानी हसरतें याद आयी तो उनके बनने और बिगड़ने का दौर भी याद आया । कुछ नाज़ुक बीजों को सजो कर रखते हुए भी उनका हालातों के सामने दम तोड़ देना भी याद आया । हसरतें भीड़ में खो जाएँ तो अलग बात है लेकिन जब  हसरतों को हालात से लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया जाए तो वो ख़ुद "क़ातिल का आत्महत्या" करने से ज़्यादा कुछ नहीं । 

"वो यादों के महल , वो ख़्वाबों के महल ।
वो ख़्वाहिशों की लड़ियाँ , वो नवाबों के महल ।
उलझते हालात और बिखरे हसरतों के धागे ,
वो माँगे हुए पल और हिसाबों के महल ,
वो ख़्वाहिशों की लड़ियाँ वो नवाबों के महल ।।"

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कुछ बीज़ बिना किसी परवाह के किसी भी हालात में बस आगे निकल पड़ते हैं , ये ज़िद्दी क़िस्म के बीज़ हैं जो अपनी क़िस्मत ख़ुद से लिखते हैं। कुछ ऐसे ही बीज़ बोने हैं अब । इस बार हसरतों के बीजों में जिद्द की खाद डाली जाएगी ताकि हालातों को भी लड़ने में तैयारी करनी पड़े । ये कुछ अलग नस्ल,अलग क़िस्म के बीज़ होंगे। 

इस बार फिर से बीजों को बो दिया है और उम्मीद है कि जिद्द की खाद पे बोए हसरतों के बीज़ फूलेंगे और गुलिस्ताँ भी बनेगा । और हाँ जो हसरतें अधूरी रह गयी उनके लिए नए बीज़ बोएँगे और नयी ज़मीन तलाशी जाएगी । उम्मीद है वो हसरतें फिर से खिलेंगी .. उम्मीद पे दुनिया क़ायम है जनाब । ..... बस बहते रहिए ...

-  रोहित जोशी