बारिश शुरू होने वाली ही थी और साथ में हवा के भयंकर झोंके भी इशारा कर रहे थे कि जल्दी से घर चला जाये वरना ऑफिस में ही शाम बीतेगी। वापसी में घर आने की जल्दी थी लेकिन हवा से टूटते हुए, उड़ते हुए , गिरते हुए सूखे पत्ते देखे तो कुछ लिखने को मन कर गया।
टूटे पत्ते की कहानी कुछ जानी पहचानी ही थी।
शाख से टूटे पत्तों पे .....वो राज़ पुराना किसका था,
वो एक कहानी किसकी थी......वो अफ़साना किसका था।।
वो ओस की बूँदें पत्तों पे ........ चिपकी थी जैसे मोती हों ,
वो पत्तों से यूँ छूट गयी.......जाने वो ठिकाना किसका था।
शाख से टूटे पत्तों पे .......वो राज़ पुराना किसका था।।
वो हवा के झोंको से लड़कर ...... सूखे पत्तों का उड़ जाना ,
फिर छू जाना पेड़ के पत्तों को .......जाने वो निशाना किसका था।
वो एक कहानी किसकी थी..... वो अफ़साना किसका था।।
अलग रंग के पत्तों की ...... कुछ अलग कहानी हो शायद ,
टूटे पत्ते की कहानी कुछ जानी पहचानी ही थी।
शाख से टूटे पत्तों पे .....वो राज़ पुराना किसका था,
वो एक कहानी किसकी थी......वो अफ़साना किसका था।।
वो ओस की बूँदें पत्तों पे ........ चिपकी थी जैसे मोती हों ,
वो पत्तों से यूँ छूट गयी.......जाने वो ठिकाना किसका था।
शाख से टूटे पत्तों पे .......वो राज़ पुराना किसका था।।
वो हवा के झोंको से लड़कर ...... सूखे पत्तों का उड़ जाना ,
फिर छू जाना पेड़ के पत्तों को .......जाने वो निशाना किसका था।
वो एक कहानी किसकी थी..... वो अफ़साना किसका था।।
ऊपर से गिरते पत्तों का ....... जमीं पे आके खो जाना ,
मिल जाना बिछड़े पत्तों से........ये गिरने का बहाना किसका था ।
शाख से टूटे पत्तों पे .......वो राज़ पुराना किसका था ।।
अलग रंग के पत्तों की ...... कुछ अलग कहानी हो शायद ,
ना जाने किसको शब्द मिले ......और तराना किसका था
वो एक कहानी किसकी थी........ वो अफ़साना किसका था।
जाने किसकी तलाश में ....... वो एक पत्ता घूम रहा,
यूँ एक अकेली रात में ........वो आवाज़ लगाना किसका था।
शाख से टूटे पत्तों पे .........वो राज़ पुराना किसका था।
उन पत्तों के ही बीच में ........ हम भी सोच में बैठ गए ,
कि वो प्यार जताना किसका था ........ और प्यार छुपाना किसका था।
शाख से टूटे पत्तों पे ..........वो राज़ पुराना किसका था ,
वो एक कहानी किसकी थी......वो अफ़साना किसका था।
जब तक ये सब लिखा तब तक बारिश शुरू हो चुकी थी। मैं भी चाय पकोड़े खाने कैंटीन को निकल गया। बारिश , चाय और पकोड़े ...... आउर का है जीवन में 💚💚💚💚
उन पत्तों के ही बीच में ........ हम भी सोच में बैठ गए ,
कि वो प्यार जताना किसका था ........ और प्यार छुपाना किसका था।
शाख से टूटे पत्तों पे ..........वो राज़ पुराना किसका था ,
वो एक कहानी किसकी थी......वो अफ़साना किसका था।
जब तक ये सब लिखा तब तक बारिश शुरू हो चुकी थी। मैं भी चाय पकोड़े खाने कैंटीन को निकल गया। बारिश , चाय और पकोड़े ...... आउर का है जीवन में 💚💚💚💚
- रोहित जोशी
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