सोचा कुछ लिखा जाए लेकिन जैसे ही लिखने बैठा सोच में पड़ गया कि क्या लिखा जाए ... ना जाने क्या ढूँढ रहा था लिखने को .... उस तलाश में जब ढूँढना ख़त्म किया तो तब तक कुछ लिख लिया था .... हम सबकी बिखरी हुई तलाशों में कुछ सवालों को इकट्ठा किया ...
उस जंग लगी तलवार में ,
बिछड़ी यादों के प्यार में ,
किसका निशान ढूँढ रहे हो ?
भटकी राहों के जाल में ,
रोज़ सुबहो शाम में ,
शहर नहीं वीरान में ,
किसका मकान ढूँढ रहे हो ?
धीरे से दबी आवाज़ में ,
कौन से उस राज़ में ,
न जाने किस अन्दाज़ में ,
किसका नाम पूछ रहे हो ?
रिश्तों की तस्वीर में ,
मेहनत या तक़दीर में ,
या सोने की ज़ंजीर में ,
किसका दाम पूछ रहे हो ?
पंछी की ऊँची उड़ान में ,
या नीचे आना थकान में ,
बैठे रहना आराम में ,
किसका सलाम ढूँढ रहे हो ?
आख़िर किसका मकान ढूँढ रहे हो ?
- रोहित जोशी
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