Thursday, June 26, 2014

मैं आरक्षण हूँ!

आज फिर से आरक्षण का मुद्दा राजनैतिक गलियारों की सैर करता हुआ सामान्य वर्ग को चिढ़ाते हुए आगे बढ़ गया !
एक सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण क्या है यह वही बता सकता है जो 1 अंक से किसी परीक्षा में असफल हो जाता है और दूसरा  उससे 30 अंक कम में सफल ! शिक्षा में और नौकरी में आरक्षण कैसे योग्यता के साथ न्याय कर पाता है ? क्या यह योग्यता के चयन में "आरक्षण की रिश्वत" नहीं है ?
आज जब एक सामान्य वर्ग एक सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करता है तो सबसे पहले कुल पदों में सामान्य का प्रतिशत देख कर होसला खो बैठता है ! कल्पना करिये 30 पदों में सामान्य वर्ग के 12 पद ? क्या शेष 18 पदो पे आवेदन करने वाले आरक्षण के आधार पे सामान्य वर्ग से योग्यता में ऊपर हो गए ? ये कैसा सामान अवसर देने का तरीका है? जो जिस पद के योग्य नहीं है वो आरक्षण के आधार पे कैसे उस पद को पाने का अधिकार रखता है ?

आरक्षण दीजिये , उसे दीजिये जो आर्थिक आधार पे पिछड़ा हो, और आरक्षण आर्थिक हो! समाज ,जाति और धर्म पे नहीं ! आर्थिक आरक्षण विशेष वर्ग को आवेदन करने का अवसर दे और सुविधा भी ! लेकिन जब परीक्षण हो तब कसौटी सिर्फ योग्यता हो !

आरक्षण या कहें "सामान्य दर्द" को समझती कुछ पंक्तियाँ-

मैं आरक्षण हूँ!

मैं इस सदी के भारत का भाग्यविधाता हूँ,
कम मेहनत में परिणाम का दाता हूँ ,
मैं सामान्य श्रेणी का "रण" हूँ !  ....... मैं आरक्षण हूँ !

मैं जात-धर्म समाज के खेल का ज्ञानी हूँ,
हर "राजनैतिक" भविष्य का अंतरयामी हूँ,
मैं न दिखने वाले अंतर्विरोध का कारण हूँ !......... मैं आरक्षण हूँ !

मैं कहीं एक "सामान्य" मन की निराशा हूँ,
कहीं "विशेष" के लिए अवसरों का तमाशा हूँ !
मैं अंधरों में रौशनी का भक्षण हूँ ! ..........मैं आरक्षण हूँ !

मैं कभी "भावनाओं" की राजनैतिक प्रयोगशाला हूँ!
कभी "कुछ उम्मीदों" के बीच "जहर" का निवाला हूँ !
मैं भविष्य का सबसे बड़ा ग्रहण हूँ ! .............मैं आरक्षण हूँ !


मैं अवसरों के लिए भटकते हुए "मन" का "रोष" हूँ !
ज्ञानी समाज की नज़रों में आज भी निर्दोष हूँ!
मैं "योग्यता" को खरीदने वाला "अदृश्य धन" हूँ!  ..........मैं आरक्षण हूँ !
मैं बंटते हुए समाज के कण कण में हूँ ! ..........मैं आरक्षण हूँ !

सामान्य वर्ग , एक ऐसा वर्ग जिसे आरक्षण औषधि की आदत पढ़ गयी है ! वास्तव में सामान्य वर्ग कुछ नहीं है ! इसी वर्ग में से कभी जाट आरक्षण कभी गुज्जर आरक्षण तो कभी मराठा आरक्षण और न जाने कितने आरक्षण बन गए ! और धर्म के नाम पे आरक्षण तो हमारे देश के राजनैतिक सेकुलरिज्म की परीक्षा है जिसे देश ने हमेशा प्रथम श्रेणी ससम्मान उत्तीर्ण की है ! जल्द ही वक़्त आएगा जब ये सामान्य वर्ग भी अतिसामान्य वर्ग के अंतर्गत आरक्षण की श्रेणी के लिए संघर्ष करता दिखाई देगा ! आज़ादी के 67 साल बाद भी जिस देश में आरक्षण एक "अवसर" मात्र रह जाये उस देश में  आने वाले समय के पास सामाजिक संघर्ष के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता !

अभी इतना ही , लेकिन इतना यकीन से कह सकता हूँ कि आने वाली "सामान्य" पीढ़ी समान अवसर के लिए संघर्ष करेगी और यह संघर्ष बहुत कठिन होगा !

- रोहित "सामान्य" जोशी

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