Monday, June 2, 2014

बेटी,परिवार समाज और सरकार !


दिन बीत गए बदायूं की घटना हुए , सोचा था निर्भया के बाद सरकार को अपनी जिम्मेदारियों का कुछ एहसास हो गया होगा लेकिन नहीं, सरकार आज भी हैं लेकिन बिना आत्मा के,हमेशा की तरह  !

 आज फिर एक बार सरकारी तंत्र एक परिवार के दुःख में अपनी रोटियां सेखने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा ! बारी बारी से सभी अपने झूठे आंसुओं के साथ परिवार की ओर बढ़ तो रहे हैं लेकिन साथ में कैमरे और लिखित बयानों को ले जाना नहीं भूलते ! इससे एक कदम आगे बहन मायावती विमान सहित उतरती हैं और खुद को दलितों का मसीहा बताते हुए कुछ आंसू बहा लेती हैं ! तभी एक प्रश्न मन में उठता हैं कि अगर वो लड़कियां दलित ना होती तो माया बहन आंसू बहाने आती ? शायद नहीं ! बिलकुल भी नहीं ! उस परिवार की क्या दशा होगी जब हर 10 मिनट में एक अभिनेता (नेता) उन्हें एक बहुत ही बढ़िया अभिनय का नमूना पेश करता हो ! सब में होड़ लगी हैं कि कौन अच्छा अभिनेता हैं !

कुछ पंक्तियाँ परिवार की मनःस्थिति समझने की कोशिश करते हुए -

आंसू भी सूख गए अब तो,अब तुम आना बंद करो ,
बहुत हो गया अभिनय घर में, अभिनेता लाना बंद करो ,
दूर कहीं रहने दो हमको , अपने लोगो के साथ में ,
ये दुःख ही काफी हैं अपने,खेल खिलाना बंद करो !
बहुत हो गया अभिनय घर में ,अभिनेता लाना बंद करो!

अभी तो बढ़ रही थी वो,अभी तो पढ़ रही थी वो ,
सपने बिखर रहे थे उसके,फिर भी लड़ रही थी वो,
जाओ ले आओ वापस उसे,मुझे मनाना बंद करो,
खो गयी हैं बेटी मेरी,मुझे हसाना बंद करो !
ये दुःख हो काफी हैं अपने,खेल खिलाना बंद करो !
आंसू भी सूख गए अब तो,अब तुम आना बंद करो ,

उम्मीद हैं कभी ना कभी मीडिया परिवार के मन की स्थिति को समझ कर अपनी ना छूटने वाली क्रन्तिकारी हरकतों पे ध्यान देगा और कुछ रचनात्मक बदलाव करेगा! साथ ही उम्मीद कम हैं लेकिन हमारे राजनैतिक दलों को भी उस परिवार की तरह सोचना होगा और अभिनय से कोसों दूर रहते हुए सृजनात्मक बदलाव लाने होंगे !

अभी इतना ही इस उम्मीद के साथ कि समाज खुद अपने अंदर झांके और उपाय ढूंढें ! यही जरूरत भी है और समय का सन्देश भी !

- रोहित जोशी 

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