और इसी तरह आज की शाम भी गुज़र गयी! हर शाम गुजरने के बाद वो अपने साथ बहुत कुछ समेटे हुए चली जाती है लेकिन फिर से आती है कुछ नयी,कुछ अलग और कुछ कल की उम्मीदें लिए! कभी इस शाम में दिन भर की थकान दिखती है तो कभी इस शाम में आज का सुकून और कल की उम्मीदें दिखती हैं ! शायद हर शाम कुछ कह कर निकल जाती है और सुनने वाला बस कल की शाम का इंतज़ार करता हुआ कल जीने लगता है ! हर शाम कुछ कहते हुए निकलती है , कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं कुछ शाम की बातें करते हुए !
शायद सबकी शाम कुछ ऐसे ही गुज़रती होंगी!
एक हताश दिन ,खुद को समझाता हुआ दिन - और फिर एक शाम गुज़र गयी !
ख्वाबों को झुठलाती हुई, फिर एक शाम गुज़र गयी !
खुद को बहकाती हुई , फिर एक शाम गुज़र गई !
आंसू भी बेमाने लगे , तेरे सैलाब के आगे,
यूँ सब को रुलाती हुई फिर एक शाम गुज़र गयी!
ख्वाबों को झुठलाती हुई , फर एक शाम गुज़र गयी !
एक और दिन कुछ उम्मीदें लिए, एक और दिन कुछ हौसला लिए - फिर एक शाम गुज़र गयी!
कुछ सपने सजाती हुई, फिर एक शाम गुज़र गयी,
अपनी ही धुन गाती हुई ,फिर एक शाम गुज़र गयी,
लड़खड़ाते कदमो ने साथ छोड़ा ही था ,
कि सारी थकान मिटाती हुई , फिर एक शाम गुज़र गयी!
कुछ सपने सजाती हुई फिर एक शाम गुज़र गयी!
एक और दिन घर परिवार से बहुत दूर ,एक और दिन आंसुओं में छुपी यादों के बीच - फिर एक शाम गुज़र गयी!
यादों के शहर बसाती हुई,फिर एक शाम गुज़र गयी,
पलकों में अश्क छुपाती हुई, फिर एक शाम गुज़र गयी,
यूँ ही आना रहेगा मेरी यादों में तेरा,
नयी शाम का भरोसा दिलाती हुई,फिर एक शाम गुज़र गयी!
यादों के शहर बसाती हुई,फिर एक शाम गुज़र गयी!
कुछ सपने सजाते हुए फिर एक शाम गुज़र गयी!
शायद सबकी शाम कुछ ऐसे ही गुज़रती होंगी!
एक हताश दिन ,खुद को समझाता हुआ दिन - और फिर एक शाम गुज़र गयी !
ख्वाबों को झुठलाती हुई, फिर एक शाम गुज़र गयी !
खुद को बहकाती हुई , फिर एक शाम गुज़र गई !
आंसू भी बेमाने लगे , तेरे सैलाब के आगे,
यूँ सब को रुलाती हुई फिर एक शाम गुज़र गयी!
ख्वाबों को झुठलाती हुई , फर एक शाम गुज़र गयी !
एक और दिन कुछ उम्मीदें लिए, एक और दिन कुछ हौसला लिए - फिर एक शाम गुज़र गयी!
कुछ सपने सजाती हुई, फिर एक शाम गुज़र गयी,
अपनी ही धुन गाती हुई ,फिर एक शाम गुज़र गयी,
लड़खड़ाते कदमो ने साथ छोड़ा ही था ,
कि सारी थकान मिटाती हुई , फिर एक शाम गुज़र गयी!
कुछ सपने सजाती हुई फिर एक शाम गुज़र गयी!
एक और दिन घर परिवार से बहुत दूर ,एक और दिन आंसुओं में छुपी यादों के बीच - फिर एक शाम गुज़र गयी!
यादों के शहर बसाती हुई,फिर एक शाम गुज़र गयी,
पलकों में अश्क छुपाती हुई, फिर एक शाम गुज़र गयी,
यूँ ही आना रहेगा मेरी यादों में तेरा,
नयी शाम का भरोसा दिलाती हुई,फिर एक शाम गुज़र गयी!
यादों के शहर बसाती हुई,फिर एक शाम गुज़र गयी!
कुछ सपने सजाते हुए फिर एक शाम गुज़र गयी!
और इस तरह हर शाम कल का भरोसा देते हुए वक़्त के साथ आगे बढ़ लेती है! पीछे मुड़ के उस शाम को देखने का वक़्त भी नहीं मिलता कि एक नयी शाम दिन भर का सफर बताने को तैयार मिलती है ! कभी यही शामें कुछ फुर्सत के लम्हों में हल्की सी मुस्कराहट या आँखों की नमी में खुद को महसूस कराती मालूम पड़ती हैं!
चलिए अभी इतना ही! मेरी भी इसी तरह एक शाम गुज़री तो सोचा इस शाम को सलाम करता चलूँ ! फिर मिलेंगे इसी TFT और LCD की दुनिया में , एक नयी शाम के इंतज़ार में !
- रोहित जोशी
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