Saturday, June 7, 2014

हिंदी क्यों ? ठीक है ! लेकिन हिंदी क्यों नहीं ?

कुछ दिन पहले संसद में शपथग्रहण समारोह के दौरान सांसदों को अलग अलग भाषाओँ में शपथ लेते देखा! ख़ुशी हुई , भारत की सांस्कृतिक विरासत का अदभुत दृश्य था!भाषा सांस्कृतिक विरासत का सबसे महत्वपूर्ण अंग माना जाता है! संसद में मानो सभी भारतीय भाषाओ का पूजन हो रहा था, भारत की विविधता का पूजन हो रहा था !मराठी, गुजराती,कन्नड़,ओड़िया,गुजराती इत्यादि और हाँ हिंदी भी! हिंदी ?
फिर अगले दिन एक टीवी चैनल पे बहस होती है की प्रधानमंत्री ने हिंदी में शपथ क्यों ली?प्रधानमंत्री ने यह फैसला क्यों लिया कि विदेशी दौरे पर भी हिंदी ही बातचीत की भाषा होगी! गुजराती,तमिल मराठी आदि भाषाएँ क्यों नहीं? हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है! एक "बुद्धिजीवी" का कहना था कि विदेशी मामलो में हिंदी बोल के प्रधानमंत्री अपने वोट बैंक को संतुष्ट कर रहे हैं? हिंदी बोलने वाला वोट बैंक ? ये कब पैदा हुआ? आगे बढ़ कर वो बोलते हैं हिंदी सारा देश नहीं बोलता? प्रधानमंत्री हिंदी सब पर थोप रहे हैं?
यहाँ पर सरे बुद्धिजीवी यह भूल जाते हैं कि भारत में बोलने के साथ साथ निश्चित रूप से सबसे  ज्यादा समझने वाली भाषा हिंदी ही है! हिंदी कोई मिश्रित भाषा नहीं है!यह अपने आप में परिपूर्ण है! जब बुद्धिजीवी यह सवाल उठाते है कि हिंदी क्यों? तब इसका सबसे अच्छा उत्तर जो मेरे पास होता है वह है " हिंदी क्यों नहीं?"

क्षेत्रीय भाषा का सीधा सम्बन्ध उस समाज के अस्तित्व से है इसमें कोई दो राय नहीं है और इसका प्रचार प्रसार और संरक्षण उस क्षेत्रीय समाज की जिम्मेदारी है ! लेकिन हिंदी बचाने की जिम्मेदारी किसकी है? हिंदी किसकी भाषा है जब सभी की अपनी अपनी भाषा है? संस्कृत किसकी भाषा थी ? सबने अपनी भाषाएँ बना ली लेकिन संस्कृत की तरफ किसने देखा?यह सभी भाषाओं की जननी थी? कितना सम्मान मिला इसे ?अचानक से कैसे गायब हो गयी ?

यह बताना जरूरी हो जाता है कि यह बुद्धिजीवी तमिल भाषा के "समाजसेवी" थे!
3  साल चेन्नई में नौकरी करने वाले को समझ में आता है कि तमिल भाषायी हिंदी के प्रति कितने उदारवादी हैं?तमिलनाडु जहाँ सिर्फ दो तरह से लोगो को देखा जाता है - तमिल और हिंदी!आप भारत के किसी भी कोने से हो आप तमिल के लिए सिर्फ हिंदीवाला हैं! यह दोहरी मानसिकता क्यों?फिर वही बुद्धिजीवी हिंदी को इस तरह से क्यों देखते हैं? जब तमिलनाडु में सारे देश को हिंदी वाला और तमिलनाडु को तमिलवाला कहा जाता है?

मन में सवाल और बहुत सारे जवाब है लेकिन ज्यादा लम्बा लेख कोई पढता नहीं! इसलिए कभी विस्तार से कहीं और लिखने और बहस करने का मौका मिलेगा तो प्रयास किया जायेगा ! एक बात और है कि मैंने अंग्रेजी के बारे में नहीं लिखा! क्यों कि मुद्दा क्षेत्रीय भाषाओ और अकेली हिंदी का था! अंग्रेजी और हिंदी का संघर्ष कभी और लिखा जायेगा! यह बहुत बड़ा और कठिन संघर्ष है!

हिंदी को अकेला देख के दुःख हुआ तो लिखना जरूरी समझा! क्षेत्रीय भाषाएँ अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं लेकिन यह संघर्ष हिंदी से क्यों? आने वाला समय अंग्रेजी भाषा से संघर्ष का है! अस्तित्व बचाने का है! संस्कृत ने सभी भाषाओ को जन्मा है और हम उसे बचाने में असफल ही रहे हैं! क्यों? यह क्यों का उत्तर अगर मिल गया तो सारी भाषाओ का संरक्षण संभव है!

अभी इतना ही, कहना बहुत कुछ था पर फिर कभी! अभी हिंदी को कुछ सहारा दिया , खुश हूँ!

- रोहित जोशी

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