Wednesday, June 18, 2014

उस पहाड़ी पर एक, मेरा भी मकान था !

केदारनाथ में आई हिमालयी सुनामी को एक साल पूरा हो गया, आज भी वो भयानक दृश्य आँखों को भिगाते हुए आगे बढ़ लेता है! यह सुनामी अपने साथ बहुत कुछ बहाते हुए आगे बढ़ी थी !  इसी बाढ़ में कहीं किसी का पूरा परिवार था तो कहीं किसी के पूरे परिवार का सहारा !  बाढ़ के एक छोर पे किसी का बचपन बह रहा था तो दूसरे छोर पे किसी परिवार के अपने बच्चों के बचपन के सपने! उसी बाढ़ में किसी की आँखों ने उम्मीदों को छटपटाते हुए देखा तो किसी की आँखों ने अपना सब कुछ गंवाते हुए! उसमे जो भी मिला सब बिखर गया !

इसी बिखराव में एक मन को पढ़ने का प्रयास करती कुछ पंक्तियाँ -

उस पहाड़ी पर एक, मेरा भी मकान था !
ज्यादा कुछ नहीं बस, थोड़ा सा सामान था,
एक परिवार था जिसने उसे घर बनाया था
आवाज़ तो लगायी मैंने, पर सब कुछ सुनसान था,
उस पहाड़ी पर , एक मेरा भी मकान था!

एक आँगन भी था , मेरे बचपन की यादें लिए,
वो मुस्कुराते पल और उनसे हुई मुलाकातें लिए,
आँगन छोटा सही पर बड़ा दिल था उसका,
आज वही आँगन मुझसे ज्यादा परेशान था,
उस पहाड़ी पर एक मेरा भी मकान था !
आवाज़ तो लगायी मैंने पर सब कुछ सुनसान था !

वहां एक नन्ही सी परी की खिलखिलाहट भी थी,
नादान सी बातें और प्यारी मुस्कराहट भी थी ,
पता बताया न किसी ने  कि वो कहाँ छुपी थी,
पता नहीं क्यों , सारा शहर ही मुझसे अनजान था ,
उस पहाड़ी पर एक मेरा भी मकान था !
ज्यादा कुछ नहीं बस,थोड़ा सा सामान था !
उस पहाड़ी पर ,एक मेरा भी मकान था !

केदारनाथ में हुए हादसे में मरने वालों को श्रद्धांजलि!

- रोहित जोशी

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