बहुत दिन हो गए कुछ लिखे हुए , बारिश में झमझमाती बूंदों के बीच एक बुलबुला दिखा जो पानी के साथ बह रहा था। कुछ देर उसे देखता रहा और उसके सफर को समझने की कोशिश की।
बहते पानी में वो बुलबुला, मुझसे नज़रें मिलाना चाहता है ,
वक़्त कुछ ही बचा है शायद , जल्दी में कुछ बताना चाहता है,
लड़खड़ाकर,रूककर, भाग भी रहा है वो ..... - 2
शायद ग़म छुपाकर मुझे हँसाना चाहता है
बहते पानी में वो बुलबुला नज़रें मिलाना चाहता है।
सोचा कुछ पल रोक कर हाल चाल पूछ लूँ,
रास्ते में मिली चढ़ाई और ढलान पूछ लूँ ,
सफर छोटा सा उसका , पर हौसलों से भरा......-2
सफर में थोड़ा आराम और थकान पूछ लूँ
सोचा कुछ पल रोक कर हाल चाल पूछ लूँ।
बुलबुलों की भीड़ थी , अब अकेला चल रहा हूँ मैं
बताया उसने ,कि अब खुद ही संभल रहा हूँ मैं
पानी में बहना है तो पानी से बैर कैसा......-2
वक़्त लगा समझने में , खुद को बदल रहा हूँ मैं
बताया उसने कि अब खुद ही संभल रहा हूँ मैं
मैं मुस्कुराया उसे देख के, अपनी कहानी याद आ गयी,
कुछ यूँ ही चला था मैं भी,बातें पुरानी याद आ गयी,
मिलना बिछड़ना लगा रहा और दिल भी समझ गया .....- 2
यादों कि गठरी खुली,वो निशानी याद आ गयी,
कुछ यूँ ही चला था मैं भी बातें पुरानी याद आ गयी
अलविदा कह सका था उसे , कि वो नज़रें हटाना चाहता था,
सफर पूरा हुआ उसका,वो पानी में समाना चाहता था,
कुछ कहने की चाह थी , पर अब वो न था...... - 2
फिर मिलेंगे अगले सफर में, मैं ये बताना चाहता था
अलविदा कह सका था उसे ,कि वो नज़रें हटाना चाहता था
बुलबुला पानी में मिल चुका था , पानी में ही तो बना था वो। पानी ही सफर था , पानी ही तकदीर थी और पानी ही मंज़िल भी। तलाश किसकी थी पता नहीं। कुछ बुलबुले सा ही सफर है अपना भी।
फिर एक नए सफर की तलाश में ......
- रोहित जोशी