Friday, May 30, 2014

"वो" एक औरत !

आज फिर एक बलात्कार ! फिर एक दरिंदगी ! मोमबत्ती क्रांति कर लो लेकिन बिना मानसिकता बदले कैसे परिवर्तन लाओगे ? जितनी किसी की मानसिकता दोषी है उतना ही दोषी यह समाज है और उतना ही दोषी इस समाज का नजरिया! बलात्कार जिस्म ही नहीं मन को मारता है ! अंततः मरती औरत ही है , मरता उसका मन है !

एक प्रयास किया है कुछ पंक्तियों से उस औरत को समझने का ! उसके मन को पड़ने का,उसकी चिंताएं और दर्द समझने का ! "वो"  एक औरत !

आज फिर कहीं सुनसान में "वो" चीख भी दब जाएगी,
कुछ आंसुओं से होते हुए "वो" चुपके से सो जाएगी ,
हक़ीक़त से कहानी बनते वक़्त कहाँ लगता है,-2
फिर कहीं एक "वो" खुद को "नसीब" बनते पायेगी !
कुछ आंसुओं से होते हुए वो चुपके से सो जाएगी!

याद करती होगी वो भी, दूर अपने गाँव को ,
सूखे समाज की गर्मी और घर की छाँव को ,
जो दूर कहीं बैठी "वो"अब, खुद को कैसा पायेगी,
सिमटी अंधेरो में "वो" आज खुद से भी डर जाएगी
फिर कहीं एक "वो" खुद को "वो" बनते पायेगी!
फिर कहीं सुनसान में "वो" चीख भी दब जाएगी !

- रोहित जोशी

Thursday, May 29, 2014

बुद्धिजीवी और बुद्धिजीवी समाज



पहला लेख है हालांकि कवितायेँ और कुछ ग़ज़लें लिखी हैं लेकिन आजकल प्रचलन लेखो का है तो सोचा इसमें भी जोर आजमाइश की जाये !

ट्विटर में, टीवी में और समाज में एक अलग "प्रजाति" ने अचानक से जन्म लिया,जिसे अंग्रेजी में Intellectual और हिंदी में बुद्धिजीवी कहते हैं !सामान्यतः इन्हें किसी भी न्यूज़ चैनल में ज्ञान बांटते और क्रन्तिकारी हरकतें करते देखा जा सकता है ! यह समाज और समाजसेवी हमेशा ज्ञान से परिपूर्ण दिखाई देता है और लगातार किसी भी विषय पे बिना रुके थके ज्ञान बाटते चलता है ! मानो शिव जी की जटाओं से गंगा बह रही हो ! निस्वार्थ, स्वच्छ , निर्मल , पवित्र ! लेकिन इनमें से कोई भी शब्द वर्तमान के बुद्धिजीवी को परिभाषित नहीं करता ! ये अपना "मन" धन के हिसाब से बदलते रहते हैं ! इन्हें गंगा जी में मिलने वाले नाले के पानी के रूप में परिभाषित करना ज्यादा आसान और सम्पूर्ण रहेगा! चलिए आगे बढ़ते हैं -

बुद्धिजीवी या कहें Intellectual समाज दोनों शब्द स्वतः अपने लिए उपयोग करते हैं या किसी और से करवा लेते हैं और समाज की नज़रों में एक अलग जगह बनाने की कोशिश में दिखाई देते हैं !  दोनों ही भाषाओँ में यह शब्द कुछ ज्ञान या समझदारी का बोध कराता है लेकिन मौजूदा हालात और इस समाज की हालत देखते हुए आपको यकीन करना मुश्किल हो जाता है और सोच में पढ़ जाते हैं कि ऐसी कौन सी बाबा जी की बूटी थी जिसे पी के आज ये उस स्तर तक पहुंच गए ? आंकलन किया तो एक ही बात समझ आयी कि इन्हें कोई उत्तर दे तो कहाँ दे ? कैसे दे ? छरछरे पानी में बुलबुले तो बहुत से बन जाते हैं लेकिन देर तक नहीं रहते! बनते हैं और फूटते हैं , यही परिवर्तन है ! जो शायद अब महसूस हो रहा है !

वास्तव में भारत में तर्क और वितर्क किसी भी मुद्दे पे किया जा सकता है,यहाँ की जनता अपने में बहुत कुछ समेटे हुए है! पान की दूकान से ले कर चमचमाते शीशो के पीछे 8 से 5 की नौकरी करने वाले सभी  सारे मुद्दों पर तर्क वितर्क करने को तैयार रहते हैं ! सभी की राय अपने आप में अदभुत और अतुल्य है ! अनुरोध है कि सभी कि "राय" को दिग्गी चचा से जोड़ के ना देखा जाये ! आज सोशल मीडिया ने इस समाज को स्वयं भू बुद्धिजीवी समाज के सामने बहुत ही मजबूती से खड़ा कर दिया है! आज प्रतिस्पर्धा बुद्धिजीवी कुतर्क और अपने "आम" समाज के तर्क वितर्क के बीच है ! ख़ुशी है , गर्व है और भी बहुत कुछ है अब बाकी  भावनाएं समझ लीजिये !

अभी इतना ही , फिर लिखेंगे , फिर मिलेंगे !  TFT या LCD स्क्रीन पे फिर से मुलाकात होगी !

- रोहित जोशी