Monday, January 19, 2015

अधूरी कहानी

 आज पुरानी यादों से कुछ गुफ्तगू करने का वक़्त मिल गया वरना तेरी याद आते ही ये दिल शराब की बातें करने लगता है और दिमाग तेरी! और जब दिल दिमाग दोनों मिल जाएं तो वह मेरी रोज की शाम बन जाती है! अब शिकायत मत करना कि मैं रोज शराब क्यों पीता हूँ !
खैर आज यादों से फुर्सत मिली ही थी कि कुछ ख्यालों ने दिमाग पे बड़ी जोर से दस्तक दे दी। और कुछ झूठी बातो के सामने आयना रख दिया।

मेरी दुनिया छोटी थी, मध्यम वर्गीय वाले सपने और वैसे ही उम्मीदें! वक़्त सीमित ही रहता है तो साथ में कुछ अपने से मेल खाने वाले सपने भी बुन लिए ! इसी बीच समझ आया की तुम्हारे सपने मेरी हक़ीक़त से बड़े थे! इतने बड़े कि मन एक कदम एक पल के लिए रुक गए और एक तरफ़ा समझौते! प्यार में समझौते प्यार प्यार में हो जाते हैं लेकिन शायद इनकी भी कुछ सीमाएं होती हैं! ये सीमाएं प्यार करने से पहले नहीं खींची जाती और बाद में खींचना बहुत मुश्किल!

खैर दोनों आगे बढे एक ही मंजिल की तरफ लेकिन शायद धीरे धीरे रास्ते अलग हो रहे थे । मैंने कच्चे रास्ते चुने और उसने पक्की सड़क। मुझे अपने जाने पहचाने रास्तों पे भरोसा था तो उसे पक्की सड़कों की रफ़्तार पर । अब दोनों रास्तों की मंजिलें भी अलग हो गयी थी और दोनों मुसाफिरों की रफ़्तार भी। 

शायद कभी यह कच्चा रास्ता उस पक्की सड़क से जा मिले। पर यह ना मिले तो बेहतर है क्योंकि जब कच्चे रास्ते पक्की सड़कों से मिलते हैं तो ये रास्ते वहीं पे ख़त्म हो जाते हैं। और उनका सफ़र भी। कच्चे रास्तों से अब प्यार सा हो गया है जब कभी ठोकर लगती है और गिरना होता है तो दर्द कम ही होता है वर्ना पक्की सड़कों पे खतरा ज्यादा है। हमें अपने रास्ते मुबारक तुम्हें सड़क।

कहानी अधूरी रही लेकिन पूरी रही ।




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