Friday, October 27, 2017

शाख से टूटे पत्ते

बारिश शुरू होने वाली ही थी और साथ में हवा के भयंकर झोंके भी इशारा कर रहे थे कि जल्दी से घर चला जाये वरना ऑफिस में ही शाम बीतेगी।  वापसी में घर आने की जल्दी थी लेकिन हवा से टूटते हुए, उड़ते हुए , गिरते हुए सूखे पत्ते देखे तो कुछ लिखने को मन कर गया।

टूटे पत्ते की कहानी कुछ जानी पहचानी ही थी।

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शाख से टूटे पत्तों पे .....वो राज़ पुराना किसका था,
वो एक कहानी किसकी थी......वो अफ़साना किसका था।।

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वो ओस की बूँदें पत्तों पे ........ चिपकी थी जैसे मोती हों ,
        वो पत्तों से यूँ छूट गयी.......जाने वो ठिकाना किसका था।
        शाख से टूटे पत्तों पे .......वो राज़ पुराना किसका था।।


वो हवा के झोंको से लड़कर ......  सूखे पत्तों का उड़ जाना ,
        फिर छू जाना पेड़ के पत्तों को .......जाने वो निशाना किसका था।
         वो एक कहानी किसकी थी..... वो अफ़साना किसका था।।

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ऊपर से गिरते पत्तों का ....... जमीं  पे आके खो जाना ,
         मिल जाना बिछड़े पत्तों से........ये गिरने का बहाना किसका था ।
         शाख से टूटे पत्तों पे .......वो राज़ पुराना किसका था ।।


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अलग रंग के पत्तों की ...... कुछ अलग कहानी हो शायद ,
         ना जाने किसको शब्द मिले ......और तराना किसका था 
         वो एक कहानी किसकी थी........ वो अफ़साना  किसका था।


जाने किसकी तलाश में  ....... वो एक पत्ता घूम रहा, 
        यूँ एक अकेली रात में ........वो आवाज़ लगाना किसका था। 
        शाख से टूटे पत्तों पे .........वो राज़ पुराना किसका था।

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उन पत्तों के ही बीच में ........  हम भी सोच में बैठ गए ,
       कि वो प्यार जताना  किसका था ........ और  प्यार छुपाना किसका था।
       शाख से टूटे पत्तों पे ..........वो राज़ पुराना किसका था ,
       वो एक कहानी किसकी थी......वो अफ़साना किसका था।


जब तक ये सब लिखा तब तक बारिश शुरू हो चुकी थी। मैं भी चाय पकोड़े खाने कैंटीन को निकल गया।  बारिश , चाय और पकोड़े ...... आउर का है जीवन में 💚💚💚💚

- रोहित जोशी 





Friday, October 6, 2017

किसका निशान ढूँढ रहे हो ?

सोचा कुछ लिखा जाए लेकिन जैसे ही लिखने बैठा सोच में पड़ गया कि क्या लिखा जाए ... ना जाने क्या ढूँढ रहा था लिखने को .... उस तलाश में जब ढूँढना ख़त्म किया तो तब तक कुछ लिख लिया था .... हम सबकी बिखरी हुई तलाशों में कुछ सवालों को इकट्ठा किया ... 


बहते पानी की धार में ,
उस जंग लगी तलवार में ,
बिछड़ी यादों के प्यार में ,
किसका निशान ढूँढ रहे हो ? 

भटकी राहों के जाल में ,
रोज़ सुबहो शाम में ,
शहर नहीं वीरान में , 
किसका मकान ढूँढ रहे हो ? 


धीरे से दबी आवाज़ में ,
कौन से उस  राज़ में ,
न जाने किस अन्दाज़ में ,
किसका नाम पूछ रहे हो ? 

रिश्तों की तस्वीर में ,
मेहनत या तक़दीर में , 
या सोने की ज़ंजीर में , 
किसका दाम पूछ रहे हो ? 

पंछी की ऊँची उड़ान में , 
या नीचे आना थकान में , 
बैठे रहना आराम में , 
किसका सलाम ढूँढ रहे हो ? 

आख़िर किसका मकान ढूँढ रहे हो ? 


- रोहित जोशी 






Wednesday, October 4, 2017

शास्त्री जयंती और राहुल द्रविड



2 अक्टूबर आते ही एक किस्सा गरमा जाता है , गरमा नहीं जाता बल्कि युद्ध से हालात हो जाते हैं।  ड्राई डे की बात नहीं कर रहा , लाल बहादुर शास्त्री जी और महात्मा गाँधी की बात हो रही है। टीवी से लेकर  मीडिया में गाँधी जी छाए रहते हैं और सोशल मीडिया में शास्त्री जी।  सोच ही रहा था की एक पुराना किस्सा याद आ गया , और शायद कुछ जवाब भी मिले..  कुछ ज्यादा लिख दिया है इसलिए हौसला बनाये रखें और पूरा पढ़ें।  😉

बात स्कूल के समय की है , शायद 10  वीं कक्षा की बात होगी।  दिवाली के समय घर की लिपाई पुताई का जबरदस्त माहौल रहता है , हर साल घर का सारा सामान बाहर रखना फिर पुताई के बाद घर कुछ अलग ढंग से सजाने की कोशिश में घरवालों की छोटी पंचायत लगाना। घर  कुछ अलग सा सजा दिया तो खुद को इंटीरियर डिज़ाइनर टाइप की फील आ जाती है।  
सफाई के समय  अचानक से 2 -3 साल पुराना सामान मिलना और फिर उसे अलग से संभाल कर रखना और अगली पुताई में उसका फिर से गायब हो कर 2 -3  साल बाद अचानक से प्रकट हो जाना।  ये आज भी एक रहस्य ही है और रहेगा।  

खैर पुताई के बाद आता था नए पोस्टर्स और कैलेंडर्स खरीदने का दौर। मैं भी उस रोज घर से सचिन या गांगुली में से किसी एक का पोस्टर खरीदने निकला। सचिन का एक अलग ही भोकाल था।  न जाने कितनी बार स्कूल न जाने के बहाने बनाये और शायद ही बाजार में कोई दुकान बची हो जहाँ रुक कर सचिन की बैटिंग न देखी हो। इण्डिया की बैटिंग आते ही लगता था की जिंदगी का एक ही मकसद है बस भाग के घर पहुंचना और सचिन की बैटिंग देखना। एक गज़ब का दौर था। 

जब दुकान में पंहुचा तो सारे पोस्टर्स को छांटना शुरू कर दिया।   सचिन , गांगुली ,कपिल देव , सलमान खान शाहरुख़ खान सबसे आगे बढ़ता गया की तभी द्रविड  के पोस्टर पे हाथ रुक गए और उसे तुरंत खरीद लिया।  एकदम बड़ा सा पोस्टर।  उस समय द्रविड  के पोस्टर पे हाथ क्यों रुके पता नहीं।  शायद द्रविड  की तस्वीर सामने आते ही समझ आया कि मैं चमक धमक से कुछ अलग चाहता था।  द्रविड चाहता था। 
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सचिन का एक अलग ही करिश्मा था।  उसकी जबरदस्त कवर ड्राइव , नज़ाकत भरा लेग ग्लांस और दरदराती स्ट्रेट ड्राइव। सब कुछ ग़दर था।  इसी चमक के पीछे एक और प्लेयर था,एकदम "भोकाली" डिफेन्स वाला।  बॉल बैट से लगे तो पिच पर ही अंतिम सांसें गिन ले , तो कभी स्क्वॉयर कट का जबरदस्त कहर।  बर्फ सा ठंडा दिमाग लेकिन कोयले जैसा जुझारू, आग पकड़ ले तो गर्मी और चमक दोनों।   ठहराव और स्थिरता वाला वक्तित्व। मिस्टर डिपेंडेबल और मिस्टर वॉल जैसे नाम सार्थक करता हुआ अपना "राहुल द्रविड" 

सचिन और द्रविड़ की तुलना करने का कोई मतलब ही नहीं है। दोनों जरूरी हैं और दोनों एकदम अलग।  सचिन के कई समर्थक होंगे तो कई आलोचक भी। द्रविड़ को गाली देने वाले आज तक नहीं मिले।  क्यों ? इस सवाल का जवाब नहीं है लेकिन शायद द्रविड़ द्रविड़ है इसलिए। 

 2  अक्टूबर का दिन और महात्मा गाँधी - लाल बहादुर शास्त्री जी।  कुछ कुछ सचिन - द्रविड़ जैसा ही। 

गाँधी जी की चमक के पीछे शास्त्री जी की धमक कुछ ऐसे खो जाती है जैसे सचिन की स्ट्रेट ड्राइव के पीछे द्रविड़ का भोकाली डिफेन्स। 

शास्त्री जी को भूल जाना हमारी गलती नहीं है बल्कि "गाँधी" नाम वाली सरकारों की है जिसे शास्त्री , कामराज , नरसिम्हा राव कभी नहीं दिखे , क्यों कि अगर ये दिख जाते तो आने वाली सरकारों के नाम कुछ और  ही होते। इसिहास  नेहरू, गाँधी में ही सिमट के रह गया।  लेकिन कुछ लोग  शास्त्री जी को भूलने नहीं देंगे , ये वही लोग होंगे जो क्रिकेट की चौपाल में  सचिन की बातों के बीच में द्रविड़ के डिफेन्स  की ज्यादा बातें करते हैं।  और ये लोग हम हैं। :) और रहेंगे। 

- रोहित जोशी




Thursday, September 14, 2017

राह राहगीर और मंज़िल



Related imageबहुत दिन हो गए कुछ लिखे हुए , बारिश में झमझमाती बूंदों के बीच एक बुलबुला दिखा जो पानी के साथ बह रहा था। कुछ देर उसे देखता रहा और उसके सफर को समझने की कोशिश की।







बहते पानी में वो बुलबुला, मुझसे नज़रें मिलाना चाहता है ,
         वक़्त कुछ ही बचा है शायद , जल्दी में कुछ बताना चाहता है,
                            लड़खड़ाकर,रूककर, भाग भी रहा है वो ..... - 2
                                          शायद ग़म छुपाकर मुझे हँसाना चाहता है
                                                    बहते पानी में वो बुलबुला नज़रें मिलाना चाहता है।



सोचा कुछ पल रोक कर हाल चाल पूछ लूँ,
        रास्ते में मिली चढ़ाई और ढलान पूछ लूँ ,
                   सफर छोटा सा उसका , पर हौसलों से भरा......-2
                             सफर में थोड़ा आराम और थकान पूछ लूँ
                                      सोचा कुछ पल रोक कर हाल चाल पूछ लूँ।



                                                        बुलबुलों की भीड़ थी , अब अकेला चल रहा हूँ मैं
                                                                     बताया उसने ,कि अब खुद ही संभल रहा हूँ मैं
                                                                                 पानी में बहना है तो पानी से बैर कैसा......-2
                                                                                         वक़्त लगा समझने में , खुद को बदल रहा हूँ मैं
                                                                                                बताया उसने कि अब खुद ही संभल रहा हूँ मैं



मैं मुस्कुराया उसे देख के, अपनी कहानी याद आ गयी,
           कुछ यूँ ही चला था मैं भी,बातें पुरानी याद आ गयी,
                   मिलना बिछड़ना लगा रहा और दिल भी समझ गया .....- 2
                           यादों कि गठरी खुली,वो निशानी याद आ गयी,
                                    कुछ यूँ ही चला था मैं भी बातें पुरानी याद आ गयी




अलविदा कह सका था उसे , कि वो नज़रें हटाना चाहता था,
            सफर पूरा हुआ उसका,वो पानी में समाना चाहता था,
                   कुछ कहने की चाह थी , पर अब वो न था......  - 2
                         फिर मिलेंगे अगले सफर में, मैं ये बताना चाहता था
                                अलविदा कह सका था उसे ,कि वो नज़रें हटाना चाहता था

बुलबुला पानी में मिल चुका था , पानी में ही तो बना था वो।  पानी ही सफर था , पानी ही तकदीर थी  और पानी ही मंज़िल भी। तलाश किसकी थी पता नहीं। कुछ बुलबुले सा ही सफर है अपना भी।

फिर एक नए  सफर की तलाश में  ......
- रोहित जोशी



Tuesday, June 13, 2017

हसरतों के बीज़

आज फिर से कुछ लिखने बैठा हूँ लेकिन आज कुछ कविता या बंधनों में रह के लिखने का मन नहीं कर रहा , आज बस बह जाने का मन है । पुरानी  हसरतों को याद करते हुए नयी ख़्वाहिशों के बीज़ बोने का मन है ।


कभी कुछ हसरतों के बीज़ बोये थे आज फिर से कुछ नए बीज़ बोने का मन है लेकिन साथ में पुरानी हसरतों के जो बीज बोये थे उन्हें भी याद करना ज़रूरी था । क्या पता ये नयी हसरतों के  बीज़ पुरानी हसरतों के साथ ज़मीन बाँट रहे हों या हो सकता है कि कुछ बीज़ बोते ही ख़त्म हो गए और सूखी ज़मीन नयी उम्मीद लगाए बैठी हो । 
ठहराव में उम्मीदें दम तोड़ देती हैं । बहता पानी  ऊर्जा समेटे हुए बस चल पड़ता है , ना रास्ते की परवाह और ना अंजाम से डर । इसी बात को सोच कर नयी हसरतों के बीज़ बोने का मन बना लिया है । 
वो पुरानी हसरतें याद आयी तो उनके बनने और बिगड़ने का दौर भी याद आया । कुछ नाज़ुक बीजों को सजो कर रखते हुए भी उनका हालातों के सामने दम तोड़ देना भी याद आया । हसरतें भीड़ में खो जाएँ तो अलग बात है लेकिन जब  हसरतों को हालात से लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया जाए तो वो ख़ुद "क़ातिल का आत्महत्या" करने से ज़्यादा कुछ नहीं । 

"वो यादों के महल , वो ख़्वाबों के महल ।
वो ख़्वाहिशों की लड़ियाँ , वो नवाबों के महल ।
उलझते हालात और बिखरे हसरतों के धागे ,
वो माँगे हुए पल और हिसाबों के महल ,
वो ख़्वाहिशों की लड़ियाँ वो नवाबों के महल ।।"

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कुछ बीज़ बिना किसी परवाह के किसी भी हालात में बस आगे निकल पड़ते हैं , ये ज़िद्दी क़िस्म के बीज़ हैं जो अपनी क़िस्मत ख़ुद से लिखते हैं। कुछ ऐसे ही बीज़ बोने हैं अब । इस बार हसरतों के बीजों में जिद्द की खाद डाली जाएगी ताकि हालातों को भी लड़ने में तैयारी करनी पड़े । ये कुछ अलग नस्ल,अलग क़िस्म के बीज़ होंगे। 

इस बार फिर से बीजों को बो दिया है और उम्मीद है कि जिद्द की खाद पे बोए हसरतों के बीज़ फूलेंगे और गुलिस्ताँ भी बनेगा । और हाँ जो हसरतें अधूरी रह गयी उनके लिए नए बीज़ बोएँगे और नयी ज़मीन तलाशी जाएगी । उम्मीद है वो हसरतें फिर से खिलेंगी .. उम्मीद पे दुनिया क़ायम है जनाब । ..... बस बहते रहिए ...

-  रोहित जोशी 

Friday, February 3, 2017

पंजाब का घमासान

पंजाब से खबरीलाल की रिपोर्ट :


पंजाब में चुनाव हैं और इसी बीच राहुल गाँधी ने तहलका मचाते हुए चुनावी घमासान में अपनी एक चाल से सारे विरोधियों को जबरदस्त झटका दे दिया है.

आज सुबह सुबह 11 बजे राहुल गाँधी ने एलान कर दिया कि पंजाब चुनाव जीतने पर कांग्रेस पार्टी हल्दीराम भुजिया नमकीन को सारे पंजाब वासियों में मुफ्त बांटेगी. हालाँकि प्रत्येक परिवार को हर दिन 10 रूपये
वाला 1 पैकेट दिया जायेगा. राहुल गाँधी ने बताया है कि कांग्रेस के इस प्रयास से किसानों को आलू उत्पादन और आमदनी में मुनाफा होगा और साथ ही युवाओं को चकना कम पड़ने की समस्या से छुटकारा भी मिल जायेगा. इस घोषणा की हर तरफ जबरदस्त प्रसंशा हो रही है और पंजाब का युवा वर्ग बहुत उत्साहित है. कांग्रेस युवा कमेटी नए नारे के साथ मैदान में उतर आयी है .

"जन जन की है यही पुकार
चकना देगी कांग्रेस सरकार"

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घोषणा के बाद कांग्रेस कार्यकर्त्ता 


सकते में आये विरोधियो में से एक आम आदमी पार्टी के एकमात्र बहुचर्चित नेता अरविन्द केजरीवाल ने इस कदम को हमेशा की तरह 'असंवैधानिक' बता डाला है. आम आदमी पार्टी ने भी चुनाव जीतने पे हर गली में  निम्बू सोडा के फ्री स्टोल लगाने का वायदा कर दिया है. केजरीवाल ने कहा कि भले ही पंजाब में नशे के हालात न सुधरें लेकिन नशेड़ियों की हालत में सुधार आना चाहिए. बरखा दत्त ने भी इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे हैंगओवर को चुनौती देने वाला ऐतिहासिक कदम बताया है.

" पांच साल केजरीवाल , निम्बू सोडा तेरे नाल "  का नारा भी जोर पकड़ने लगा है.


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1 पेग पे मिलने वाले निम्बू सोडा की मात्रा बताते केजरीवाल 


अफरातफरी में अकाली दल ने भी दवाई डिस्प्रिन को फ्री करने का वादा  किया है और हर जेब में एक डिस्प्रिन अनिवार्य रूप से रखने का कानून बनाने में जोर दिया है . बादल बंधुओं का कहना है कि इस फैसले से फार्मा इंडस्ट्री में उछाल आएगा और साथ ही हैंगओवर से होने वाले सर दर्द से राहत भी मिलेगी.  सरकार नशे की हर समस्या से लड़ने के लिए पूरी तरह से कटिबद्ध है.



अमित शाह ने भी बीजेपी की ओर से  नशे की समस्या दूर करने के लिए रजनीगंधा के साथ तुलसी फ्री देने का वादा किया है और जोर देकर कहा है कि इससे युवाओं में नए तरीके के शौक पैदा कर के बाकि समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है.

नारा है ,
"अबकी बार , रजनीगंधा मेरे यार"

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मिश्रा जी की दुकान के बाहर कार्यकर्ताओं की भीड़



शानदार माहौल है और जनता एक मिली जुली सरकार की आस लगाए बैठी है.
अखिल भारतीय बेवड़ा संघ ने सारी घोषणाओं का स्वागत किया है.

बाकी समाचार चुनावी नतीजो के बाद.


-रोहित जोशी
कार्यकर्ता